ह्स्तीका तेरी मुझको एह्सास हो गया है,
तुम कहां हो मेरे मालिक तुझे ढूंढूं कहां कहां मै.
तुम राम हो मंदिरमें या खुदा हो मस्जिदमें,
तुम साहेब हो गुरूद्वारे या ईसु हो गिरजाघरमें,
तुम एक या जुदा हो तुझे ढूंढू कहां कहां मै,
ह्स्तीका तेरी मुझको एह्सास हो गया है.
तुम कणमें हो या पर्वत में धरापे हो या गगनमे,
मुझमें हो या सभीमें समजना पाया कभी मैं,
तुम जीव हो या शिव हो तुझे ढूंढू कहां कहां मै,
ह्स्तीका तेरी मुझको एह्सास हो गया है.
मुझे रोना है बहुत रोना तेरे कदमो में सर झुकाकर,
फिर गोदमें उठालो जब चाहे मुंझे उठाकर,
तुम माता हो या पिता हो तुझे ढूंढू कहां कहां मै,
ह्स्तीका तेरी मुझको एह्सास हो गया है.
तेरा “साज” बुला रहाहै आवाझ दो कहां हो,
तेरा रूप होतो मुंझको दिदार करादो मुंझको,
ये आंखे तरस रहीं है,तुझे ढूंढू कहां कहां मै,
ह्स्तीका तेरी मुझको एह्सास हो गया है.
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राग – दरबारी कहानडा, मालकौंश, सारंग
“साज” मेवाडा
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