तन्हाईयां
तन्हाईयां अब मुझें रास आयेगी,
सुने शहरमें दिलने सजा पाई है.
शिकवे न गिला महेफिले न फिझा,
दीनमें भी रातो की कसक पाई है.
नहिं रहाहै अब मौसम फिरभी,
न जाने क्यों फिरसे घटा छाई है.
कोइ मुजें युं बरबाद करेगा ना,
वहां न जानें की मैंने कसम खाई है.
सुरोंसे नही है वास्ता ‘साज‘को,
युंही उसने अच्छी गजल गाई है.
‘साज‘ मेवाडा
Leave a comment