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Archive for ઓગસ્ટ, 2014

गझल कैसे हो….

बंजर जमीमें बीज बोते हो,

क्यों शिर पकडके तूम रोते हो?

गंगा समज तालाबमें न्हा कर,

कैसे तुम्हारे पाप धोते हो?

हैरान है भगवानभी अबतो,

ये बूत मंदिरका भिगोते हो!

तारे फलकमें देखकर प्यारे,

दहलीझका दीपकभी खोते हो!

सच्चे कभी होते नहीं तोभी,

सपने सजाके साजसोते हो!

-‘साजमेवाडा

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